अंजुरी भर प्यार दो

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अध्यक्षा शब्दसेतु, ४१/सतपुडा अणुशक्तिनगर मुम्बई ४०००९४

श्री जय प्रकाश त्रिपाठी

श्री जय प्रकाश त्रिपाठी

Monday, June 9, 2008

शब्द

शब्द !
पड़कर रखना संवेदन शीलता को , नाद को
इसी तरह जारी रखना सौहार्द को संवाद को
वरना विखर जायेगे रिश्ते ,
बहक जायेगी फिजाए कश्मीर की
लुप्त हो जायेगी वाणी तुलसी की ,रहीम की
शब्द !
बन जाना सेतु और उतार देना पार
श्रीराम की सेना को पुनः एक बार
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भोजपुरी लोक

कहाँ अईसन मिठास कौनो बोलिया में
जेतना आवें हुलास भोजपुरिया में ॥
मुल्ला भी बोले , पुजारी भी बोले
नेता भी बोले , मदारी भी बोले
बोले ला लोगावां शहरिया में ॥
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मन रहेला उदास चली घूमी आई गावं
गावं के गवनैया डूबल डिस्कों के पानी में
कजरी हेराय गयल रैप की रवानी में
पावं के पैजनिया खींचे लम्बी -लम्बी साँस
मन रहेला उदास चली घूमी आई गावं ।

Sunday, June 1, 2008

कुछ और दोहे

जे.पी के कुछ और दोहे
कुछ मेरा कुछ आप का अगर मिले सहयोग ।
शब्दों का इक पुल बना बढे चले हम लोग ॥
संस्कार स्वाहा हुए , रिश्ते हुये शहीद ।
मर्यादा खंडित हुयी , मिट्टी हुयी पलीद ॥
गुणवत्ता गायब हुयी विज्ञापन का ज़ोर ।
माल वही बिकता यहाँ जिसका जितना शोर॥
जीवन भर की संगनी सुख - दुःख दे साथ ।
कभी न उसको छोडिये पकड़ा जिसका हाथ ॥
सुख मिलता है तभी जब , मिले सही प्रतिसाद ।
ग़लत प्रशंसा व्यक्ति को देता, है अवसाद ॥