अंजुरी भर प्यार दो

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श्री जय प्रकाश त्रिपाठी

श्री जय प्रकाश त्रिपाठी

Monday, June 9, 2008

शब्द

शब्द !
पड़कर रखना संवेदन शीलता को , नाद को
इसी तरह जारी रखना सौहार्द को संवाद को
वरना विखर जायेगे रिश्ते ,
बहक जायेगी फिजाए कश्मीर की
लुप्त हो जायेगी वाणी तुलसी की ,रहीम की
शब्द !
बन जाना सेतु और उतार देना पार
श्रीराम की सेना को पुनः एक बार
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