अंजुरी भर प्यार दो

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श्री जय प्रकाश त्रिपाठी

श्री जय प्रकाश त्रिपाठी

Saturday, May 31, 2008

प्रेम लता त्रिपाठी - ग़ज़ल के चंद शेर

सच बोलूं तो डर लगता है ।
सहमा - सहमा घर लगता है ॥
पाँव बचा लो चट्टानों से ।
जख्मों पर भी कर लगता है
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लग रहा दिन चुनावों के आने लगे।
रहनुमा जाल घर -घर बिछाने लगे ॥
भोर के साथ वादों का ले टोकरा ।
छप्परों में ह्बेली उगाने लगे ॥
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जिस घडी से हम मशहूर होने लगे ।
ज़िंदगी के सफर सूने -सूने लगे ॥
रात की न खबर न ख़बर दोपहर ।
तालियों के बिछौनों पर सोने लगे ॥