सच बोलूं तो डर लगता है ।
सहमा - सहमा घर लगता है ॥
पाँव बचा लो चट्टानों से ।
जख्मों पर भी कर लगता है
===============
लग रहा दिन चुनावों के आने लगे।
रहनुमा जाल घर -घर बिछाने लगे ॥
भोर के साथ वादों का ले टोकरा ।
छप्परों में ह्बेली उगाने लगे ॥
=====================
जिस घडी से हम मशहूर होने लगे ।
ज़िंदगी के सफर सूने -सूने लगे ॥
रात की न खबर न ख़बर दोपहर ।
तालियों के बिछौनों पर सोने लगे ॥
अंजुरी भर प्यार दो
शब्दसेतु में रचनाधर्मिता से जुड़े सभी लोगों का हार्दिक स्वागत है. शब्दसेतु एक ऐसा मंच है जहाँ आप अपनी रचनाओं को प्रकाशित कर सकते हैं. यदि आपकी रचनाएँ स्तरीय हैं तो आपको अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ हेतु आमंत्रित किया जा सकता है तथा आपकी रचनाओं को प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित भी किया जा सकता है
Shabd-setu
श्री जय प्रकाश त्रिपाठी
Saturday, May 31, 2008
Subscribe to:
Posts (Atom)