मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर जनपद में १९६३ में मकर संक्राति के दिन हुआ । स्कूल एवं कालेज की पढ़ाई पूरी होते ही माँ-बाप ने शादी की रस्म भी पूरीकर दी और शादी होने के बाद मैं अपने गाँव की सोंधी गंध समेटे मुम्बई आगयी । पिता जी को संगीत एवं अवधी में गीत लिखने का शौक था और उनका यह गुण मेरे अंदर रूपांतरित हो गया । संयोग से पति जोकि पेशे से वैज्ञानिक है , पहले से लेखन के क्षेत्र में प्रयासरत थे । आज उनकी गणना लोकप्रिय कवि एवं श्रेष्ठ मंच संचालक के रूप होती है । कुल मिलकर मुझे सृजन के लिए एक उपयुक्त व उर्बर परिवेश मिला । मेरे अंतस में विद्यमान संवेदना एवं अनुभूतियों की भावोर्मियाँ तरंगित होने लगी । ९० के दशक में पहली बार एक गीत लिखी -
सुधियों के धागे में स्वजनों की मोती नेह की सलाई में हर दिन पिरोती
इस रचना से मिला प्रतिसाद मेरी लेखनी के लिए अमृत तुल्य साबित हुआ । तबसे अनवरत लिखने का कार्य जारी है । मेरे काव्य गुरु प्रोफेसर नन्दलाल पाठक का यह गुरु मंत्र की हर दिन कुछ पढों, कुछ लिखों और कुछ गुनोंतुम्हारेअंदर साहित्य की आभा है एक दिन निश्चित प्रदीप्त होगी ।
अंजुरी भर प्यार दो
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श्री जय प्रकाश त्रिपाठी
Sunday, May 18, 2008
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