क्या बिगाड़ लेगे यहाँ नेताओं का आप ।
एक से बढ़कर एक है यहाँ अंगूठा छाप ॥
रिश्ते रिसते जा रहे मूक हुआ संबंध ।
राखी की कीमत घटी चटक गया अनुबंध ॥
बरगद बूढा हो गया ठूंठ। हुआ अशोक ।
सिर से साया जा रही रोक सके तो रोक ॥
यह सुन कबीरा रो दिया बहुत हुआ संताप ।
बेटी फिर मारी गई कातिल निकला बाप ॥
यह कैसा साहित्य है कैसा यह परिहास ।
कौमिक गिरी कर रहें कवि का पहन लिबास ॥
अंजुरी भर प्यार दो
शब्दसेतु में रचनाधर्मिता से जुड़े सभी लोगों का हार्दिक स्वागत है. शब्दसेतु एक ऐसा मंच है जहाँ आप अपनी रचनाओं को प्रकाशित कर सकते हैं. यदि आपकी रचनाएँ स्तरीय हैं तो आपको अखिल भारतीय कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ हेतु आमंत्रित किया जा सकता है तथा आपकी रचनाओं को प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित भी किया जा सकता है
Shabd-setu
श्री जय प्रकाश त्रिपाठी
Thursday, May 29, 2008
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4 comments:
अच्छे दोहे हैं भाई
ये तो दोहे के फॉरमैट में नहीं हैं। १३, ११, १३, ११ मात्राएँ होनी चाहिए। इन्हें मुक्तक कहा जा सकता है।
खैर हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है।
हिन्दी से सदैव जुड़े रहने के लिए पधारें
हिन्द-युग्म
Shabda setu ka blog bahut achcha prayas hai
क्या बिगाड़ लेगे यहाँ नेताओं का आप ।
एक से बढ़कर एक है यहाँ अंगूठा छाप ॥
दोहे फारमेट मे हों या न हों पर सोंच बहुत अच्छी है, सदैव लिखतीं रहें मेरी शुभकामनायें आपके साथ हैं।
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